Friday, August 11, 2023

कुछ ग़लत नहीं होता…

 कुछ गलत नहीं होता,

कई बार 
कुछ सही नहीं होता, 
बस इतना होता है, 
कि कुछ होता है 
सही और गलत से परे। 

मैंने सुना है 
लोगों से, 
जो चीजें अनुकूल हो 
वो चीजें सही होती है, 
जो प्रतिकूल वो गलत। 

पर मैं सोचता हूं, 
जो चीजें, 
होती होंगी 
सही और गलत से परे। 
उन्हें क्या कहते होंगे लोग ? 
मैंने कभी नहीं सुना। 

~ अनुराग अंकुर

Saturday, May 9, 2020

कृष्ण की चेतावनी




वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,

सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।



मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,

दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।



‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,

तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!



दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,

उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।



हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,

डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।



यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,

मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।



‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,

भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।



‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,

चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।



‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,

शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।



‘भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,

यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।



‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,

मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।



‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,

पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण।



‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर बड़ी क्या लाया है?

यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है?



‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,

तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।



‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,

फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा।



‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,

वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का पर, दायी होगा।’



थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े।

केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!

बीती विभावरी जाग री!

बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी

अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सो‌ई है आली
आँखों में भरे विहाग री!

सब जीवन बीता जाता है

सब जीवन बीता जाता है
धूप छाँह के खेल सदॄश
सब जीवन बीता जाता है

समय भागता है प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में,
हमें लगा कर भविष्य-रण में,
आप कहाँ छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है

बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है

वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है

सब जीवन बीता जाता है.

मजदूर दिवस

शहीदों को नमन


हिन्द के लाल,सपूतों ने 
अपना परचम फैलाया है,
भारत की पावन भूमि को
खून  से  अपने  सींचा  है,

आशुतोष शेर का शौर्य देख 
आँखों  से आँसु  बहते है
देख शहादत अनुज सूद की
सबका  दिल  तड़फता  है

राजेश,दिनेश के बलिदान पर
खून के आँसु बह गए
देख शहादत सैनिक शकील की
नैनो के बादल बरस गए

जाबांजों की माताओं ने
ऐसे शेरों को जन्म दिया
देश के अभिमान के खातिर
जीवन न्योछावर कर दिया

कश्मीर हिन्द का मस्तक है
आतंकियों को मार भगाना है
अब बांध  सब्र  का टूट गया
यह  बात  हमे  समझाना  है

भार्या शहीद की जोश से बोली
ना  आँखों  मे आँसु  लाऊंगी
देश की सेवा  करने वाले का
अभिमान  कभी  ना  तोड़ूंगी

 शहिदों  की सौगंध हमे
अब खामोश नही हम बैठेंगे,
चाहे   कुछ  भी   हो   जाये
अब नही किसी को छोड़ेंगे, 

बेटे  की पथराई देह देख 
माँ बाप की आँखे भर आईं
गोदी में लेकर सिर बेटे का
बचपन वाली लोरी गाई

तिरंगे में लिपटी देह देखकर
शहीद  की  बेटी  लिपट गई,
उठा के घूंघट सैनिक की पत्नी
ढाढस  बिटिया को बंधा रही,

ऐ  हिन्द देश के वीर सपूतों
हम कभी भूल न पाएंगे
श्रद्धा से नतमस्तक होकर
चरणों मे शीश नवाएँगे

रंगों सँग गौरैया


सोचता हूँ फूलों में
रंग कहाँ से आते हैं,
खुशब भी नजाकत भी
फूल कहाँ से लाते हैं,
शायद किरणों के तेज से  
खिलते हैं मुरझाते है,
देख सतरंगी आभा को
झूमते हैं इठलाते हैं,
दिल मंजरी का  निराला है
मन से साथ निभाते है,
प्रेम खुशी से गले लगाकर
प्रणय रंग बरसाते हैं,
दुनिया से जाने वालों के सँग
कसक से साथ निभाते हैं,
लिए  खामोशी झूम झूमकर
आमोद बांटते फिरते है,
हँसती और गाती इस दुनिया मे
उल्लास से रंग बिखरता है,
भीनी भीनी फूलों की खुशबू 
जीवन को महकाती हैं,
छोटी सी नन्ही सोहनी चिरैया
जब से मेरे घर आई है,
देकऱ संदेश आमोद का सबको
मंद  मंद मुस्काती  है,

Justice श्री गोपाल कृष्ण व्यास 'तनुज'

कुछ ग़लत नहीं होता…

  कुछ गलत नहीं होता, कई बार  कुछ सही नहीं होता,  बस इतना होता है,  कि कुछ होता है  सही और गलत से परे।  मैंने सुना है  लोगों से,  जो चीजें अन...